लहरों की तरह हूँ में
खामोश समुन्दर को भी आवाज देती हूँ
ज़िंदगी को भी लेहरों की तरह ही में जीती हूँ
खामोश बैठना नहीं आता मुझे
मचलती रहती हूँ
लहरों की तरंहा कभी हवाओं से सुन कर चलती हूँ
कभी खुद की आवाज़ ही सुनती हूँ
जीवन को यूँ चुपचाप नहीं
उसमे कुछ हलचल कर के चलती हूँ सीखकर लहरों से में उठक पटक ज़िंदगी की करती हूँ
बनाकर रेत पर घरोंदा
उसे लहरों से बचाती चलती हूँ
नादाँ लहरों से कभी खेलती हूँ
कभी उनसे बचती हूँ
मनचली लहरों की तरह जीवन जीती हूँ
और यूँ संन्नाटो में लहरों की आवाज़ को सुनती हूँ
में ज़िंदगी को लहरों की तरह ही जीती हूँ
शालिनी गुप्ता
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