Showing posts with label Motivational. Show all posts
Showing posts with label Motivational. Show all posts

घरोंदा

घरोंदा 


ज़िंदगी का रंग एक सा कभी नहीं रहता 
तूफान आ कर चला जाता है 
उसके पीछे का संसार फिर कैसे बन पाता है 
कुछ यादे मीठी कुछ कड़वी सी मिलकर रह जाती है 
जो बन जाती है जीवन भर की यादे रह जाती है 
तूफान के बाद का मंजर कुछ यू हो जाता है 
घरोंदे जो उजड़ गए वो कहाँ बन पाते है 
कुछ नई यादें जोड़ कर फिर नये घरोंदे बनाते है 
कुछ भी थमता नहीं प्रकर्ति के नियम भी निराले है 
गुलाब है जो कहीं मय्यत पर 
तो कहीं किसी के बालो पर भी सजाते है 
कड़वी और मीठी यादों को मिलकर 
गुलाब की तरह इंसां कहाँ बन पाते है 
जो काँटों में भी रहकर खुशुबू बिखराते है
इंसान कहाँ तूफान के बाद यूँ उठ पाता है 
और गुलाब की तरह तूफान में भी खिल पाता है 
तूफान तो बस आ कर चला जाता है 
उसके पीछे का संसार इंसां खुद ही बसाता है 
 
शालिनी गुप्ता 


ज़िंदगी एक पहेली

जीना है तो चलो कुछ यूँ जीते है
मायूसीओ को पीछे छोड़
मुस्कुहराहटो से आगे बढ़ते है
जीना है तो कुछ यूँ जीते है
परेशानिओ से न घबराकर
उनका समाधान ढूंढ़ते है
क्यूँ हमे कुछ परेशां करे
चलो हम खुद को ही बदलते है
जीना है तो कुछ यु जीते है
समझकर न हर चीज़ को
कुछ नासमझ बनकर चलते है
आसान हानि है जीवन को समझना
तो उसे बिना सोचे समझे ही जीते है
कुछ मकसद बनाकर जीवन का
उसे पूरा करते है
जीना है तो चलो कुछ यूँ जीते है
परिंदो की तरह आसमां में उड़कर
ज़मीं को छूते है
जीवन को इस तरह जीते है
फूलों की तरह समर्पित होकर
उसकी खुशबू को बिखेरते है
किसी का सहारा
किसी की उम्मीद
किसी का दामन
खुशिओ से भरते है
जीना है तो कुछ इस तरह जीते है
शालिनी गुप्ता



उम्मीद की किरण

नया सफर है नई है राहें 

अनजानी डगर है मंजिल किधर है 

चलकर राहों पर मंजिल को ढूंढना होगा 
सफर है कठिन पर इस सफर पर चलना तो होगा 
मुश्किल है मगर संघर्ष भी थोड़ा करना होगा 
ज़िंदगी है अनभुझी पहली ऐसे हल तो करना ही होगा 

होकर मजबूत गिर गिर कर संभालना तो होगा 
विश्वास और उम्मीद की किरण  से 
अपने सूरज तक पहुंचना होगा 
हारकर भी खुद से हमेशा जितना ही होगा 
ज़िंदगी के इस सफर पर चलकर 
अपनी मंजिल तक खुद पोहचना ही होगा 


शालिनी गुप्ता 





ज़िंदगी एक लहर

लहरों की तरह हूँ में 
खामोश समुन्दर को भी आवाज देती हूँ 
ज़िंदगी को भी लेहरों की तरह ही में जीती हूँ 
खामोश बैठना नहीं आता मुझे
मचलती रहती हूँ 
लहरों  की तरंहा कभी हवाओं से सुन कर चलती हूँ 
कभी खुद की आवाज़ ही सुनती हूँ 

जीवन को यूँ चुपचाप नहीं 
उसमे कुछ हलचल कर के चलती हूँ 
सीखकर लहरों से में उठक पटक ज़िंदगी की करती हूँ 
बनाकर रेत पर घरोंदा 
उसे लहरों से बचाती चलती हूँ 
नादाँ लहरों से कभी खेलती हूँ 
कभी उनसे बचती हूँ 
मनचली लहरों की तरह जीवन जीती हूँ 
और यूँ संन्नाटो में लहरों की आवाज़ को सुनती हूँ 
में ज़िंदगी को लहरों की तरह ही जीती हूँ 

शालिनी गुप्ता 




रंगबिरंगी ज़िंदगी

ज़िंदगी नाम है गर, संघर्ष और द्वन्द का
तो मंजिल तक हमें खुद ही जाना है
खुद को ना परेशां कर , खुद को ना बेचैन कर
ज़िंदगी को अभी तो थोड़ा ही जाना है 

राहें मुश्क़िल भी होंगी
मंजिल दूर भी होगी
पर कदमो को हमें तो हमेशा आगे ही बढ़ाना है 

उदासी और मायूसी को भी अपनी हमें खुद ही तो मिटाना है
ज़िंदगी सब कुछ नहीं देती
हमें ज़िंदगी से खुद ब खुद लेते जाना है 

बाँट दे खुशियाँ सबको 
ग़मो को भी तो झोली में अपनी सजाना है
सूरज की तपन के बाद बारिश की बूंदो के अहसास को
तभी तो हमने जाना है 

हाँ मुश्किल तो है ये सफर
पर इस सफर को हमें हँसते हँसते हंसी बनाकर बिताना है 
ज़िंदगी में, मुश्किलें तो है थोड़ी
पर आंसा भी उन्हें हमें खुद ही बनाना है

हारना नहीं हमें किसी से, चाहे हालत हो या मुसीबतें 
हमें हर राह पर बस आगे बढ़ते जाना है 
और ज़िंदगी के इस सफर को आसां बनाना है 

शालिनी गुप्ता 


जीत विश्वास की

वक्त के आगे सब हार गये है
वक्त के सामने इंसां बेचारा हो गया है 
बेबस लाचार और बेसहारा हो गया है 

कब ये वक्त बीतेगा 
कब ये तूफां खत्म होगा 
कब तक आखिर खुदा
इंसां का यूं ही इम्तिहां लेगा 

कब तक यूं ही इंसां  
इन हालातो का सामना करेगा 
इंसां ही तो है, बेचारा 
कब तक यूं  ही इस वक्त के बीत जाने का इंतजार करेगा 

पर वक्त कभी एक सा नहीं रहता 
बहती नदिया की तरह ये भी थमा नहीं रहता 
इंसां  को तो चलते रहना होगा 
जीवन कभी ठहरता नहीं है 
इसी तरह इंसां  भी कभी हारता नहीं है 

गिरता है, उठता है फिर हालातों का सामना भी करता है 
तूफां के चले जाने और वक्त के बीत जाने का इंतजार करता है 
हालात जो आज है, वो न कल रहेंगे 
हर अँधेरे के बाद सहर है 
ये इंसां  दोहराते रहेंगे 

फिर बनेगा आशियां 
फिर उजाला होगा 
इन नाकाम कोशिशों को तो 
कामयाब होना ही होगा 

शालिनी गुप्ता 

वक्त की जंग

वक़्त फिर तूफ़ा का आया है 
फिर वही भयानक मंजर छाया है 

हर इंसां को बच कर चलना है 
आँधियों के रुख को मोड़ना है 

फिर एक वीर सिपाही की तरह 
युद्ध के  मैदान पर खड़े होकर 
इस जंग को तो अब लड़ना है 

जीत होगी ये विश्वास रखना है 
उम्मीद का हाथ अब नहीं छोड़ना है 
मायूसी भी है छाई 
उदासी है घर घर आयी 

फिर भी खुशियों का इंतज़ार तो करना है 
यू इंसां को नहीं हार कर चलना है 

आस का, विश्वास का, दामन थामे रखना है 
डर कर नहीं, लड़ कर, इस जंग को जीतना  है 

अब जिंदगी  का सामना आत्मविश्वास 
और खुद के साथ से ही करना है 
जीतना है खुद से हर पल 
और खुद को ही जीतना है 

शालिनी गुप्ता 

जीने की चाहत

क्यूँ नहीं अपने से ही लड़ पाता इंसां
क्यूँ अपने से ही हार जाता है इंसां
ज़िंदगी तो नियामत है
ये देन है खुदा की
क्यूँ उसे नहीं जी पाता इंसां

दर्द गर जीने में है
दर्द तो मरने में भी है
फिर क्यूँ नहीं ये दर्द सह पता इंसां

हाथ तो बहुत है हौंसले देने के लिए
क्यूँ फिर अपना ही हाथ नहीं बढ़ा पाता इंसां
संघर्ष है तो करो उसे
क्यूँ उस संघर्ष से घबराता है इंसां

अपने लिए नहीं तो
दूसरो  की खुशी के  लिए ही
क्यूँ नहीं कुछ कर जाता इंसां

किसी की दुआ बनकर
किसी की आँखों का सपना बन
क्यूँ नहीं किसी की मुस्कराहटों में रह पता इंसां

मौत तो कोई हल नहीं किसी भी समस्या का
क्यूँ नहीं इस समस्या का समाधान निकाल पाता इंसां

मकसद तो बहुत है जीने के लिए
क्यूँ नहीं एक मकसद बना पाता इंसां

क्यूँ यूं, ज़िंदगी से भागकर
कहाँ जाता है  इंसां
क्यूँ नहीं अपने से ही लड़ पाता इंसां

शालिनी गुप्ता 

जीवन के रंग

कभी कभी मायूसी छा जाती है
कभी कभी उदासी भी आ जाती है

ज़िंदगी कहाँ तू एक सी रह पाती है
कभी धुप कभी छाँव की तरह आ जाती है
मौसम की तरह रंग बदलते है तेरे भी
तू भी कहाँ एक रंग ला पाती है
कभी सुख कभी दुःख  कितने पहलु है तेरे
तू भी कहाँ एक रुख रख पाती है

ये इंसा ही तो है
जो तेरे हर रूख का सामना करता है
कभी गिरता है, कभी बिखरता है
फिर उठकर अपने होंसले से 
तुझे जीता है

तुझे जीने की ख्वाहिश को नहीं कभी तोड़ता है
तेरे हर पहलु, तेरे हर रुख का सामना भी करता है
तेरे दामन में ही अपना सर रखकर रोता है

जीता है तुझे खुद में
और जीने  का अंदाज़ औरो को देता है
उदास होकर भी मायूस होकर भी
किसी भी रूप में
तेरे हर रूप को जीता है

शालिनी गुप्ता

उम्मीद की किरण


अँधेरे को मिटाकर
रोशनी की किरण को  बाहर आना होगा 
युद्ध  बाहर भी है, अंदर भी है 
मन के इस युद्ध को हार कर भी जीत जाना होगा 

इस युद्ध को, इस द्वंद को अपने से भी जीत जाना होगा 
निराशा को हराकर, आशा को जीताकर 
खुद से ही खुद को जीताना होगा 

मोत के सत्य को देखकर भी 
ऐ ज़िंदगी तुझे तो जी जाना ही होगा 

पक्षियों से कला जीने की सीखो 
घरौंदा बार बार टूटता है उनका 
पर होंसला नहीं छूटता उनका 

हर बार टूट टूट कर भी घरौंदो को बना लेते है 
ये इंसां है जो हौसलों  को हरा लेते है 
उनसे सीखकर ही अपने घरौंदो को 
टूटकर भी बनाना सीखना ही होगा 
ऐ ज़िंदगी तुझे तो जी जाना ही होगा 

उम्मीद के दिये को अभी बुझने नहीं देना होगा 
सैनिक जो खड़े है सरहदों पर मौत की 
उनके होंसले को देखकर 
मौत को जीतकर उनकी तरह ही जीना होगा 
सरहदों को अपनी बचाना होगा 
घरौंदो को अपने बनाना होगा 

कब तक यूं मर-मर के जीये 
उम्मीद के, आशा के दिये को जलाना होगा 
ज़िंदगी तुझे घुट घुट कर नहीं 
खुल कर अब तो जी जाना होगा 
उम्मीद के दियों को जलाना होगा 
ज़िंदगी तुझे ज़िंदादिली से 
अब जी जाना होगा 

शालिनी गुप्ता 


जीवन एक संघर्ष

जिंदगी आसां नहीं है
पर उसे न मुश्किल बनाना होगा
गर संघर्ष है हर कदम पर
तो होंसलो को भी चंद बढ़ाना होगा

गर थक भी जाये हम अगर
बिखर  भी जाये, हम अगर
पर मंजिल को तो हमें पाना होगा

आसां नहीं है ये सफर
तो सफर को भी रंगी बनाना होगा

ठोकरे ही सीखाती है जीवन जीने का हुनर
इससे डरकर नहीं हमे बैठ जाना होगा
ठोखरो से ही सीखकर
हमें आगे बढ़ जाना होगा

रुकना नहीं, थमना नहीं
यही है जीवन का फलसफ़ा
इसे हमें अपनाना होगा

ना डरकर, ना मरमरकर
हमें जिंदगी की डगर पर
जिंदादिली से चलते जाना होगा 

जिंदगी आसां नहीं है
पर उसे न मुश्किल बनाना होगा

___शालिनी गुप्ता