घरोंदा

घरोंदा 


ज़िंदगी का रंग एक सा कभी नहीं रहता 
तूफान आ कर चला जाता है 
उसके पीछे का संसार फिर कैसे बन पाता है 
कुछ यादे मीठी कुछ कड़वी सी मिलकर रह जाती है 
जो बन जाती है जीवन भर की यादे रह जाती है 
तूफान के बाद का मंजर कुछ यू हो जाता है 
घरोंदे जो उजड़ गए वो कहाँ बन पाते है 
कुछ नई यादें जोड़ कर फिर नये घरोंदे बनाते है 
कुछ भी थमता नहीं प्रकर्ति के नियम भी निराले है 
गुलाब है जो कहीं मय्यत पर 
तो कहीं किसी के बालो पर भी सजाते है 
कड़वी और मीठी यादों को मिलकर 
गुलाब की तरह इंसां कहाँ बन पाते है 
जो काँटों में भी रहकर खुशुबू बिखराते है
इंसान कहाँ तूफान के बाद यूँ उठ पाता है 
और गुलाब की तरह तूफान में भी खिल पाता है 
तूफान तो बस आ कर चला जाता है 
उसके पीछे का संसार इंसां खुद ही बसाता है 
 
शालिनी गुप्ता 


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