धुंधला सा जीवन,
धुंदली सी तस्वीर
क्षित विक्षिप्त मानवता
दम तोड़ता विवेक
जानते हैं हम सभी
पर जानता नही
चाहते हैं हम सभी
पर चाहते नही
जी रहे हैं सभी
एक ख्वाब सजाके
ख़ुद को मिटाके
ख़ुद को लुटाके
जी रहे हैं सभी
यूँ सभी को जीना हैं
चल रहे हैं सभी
यूँ सभी को चलना है
भाग रहे हैं सभी
मौत के सचाई से
पा रहे हैं आश्रय
विक्षिप्त बिखरी हुई
मानवता की गहराई मैं
आसा है नवसंचार मैं
सब है सब का विचार हैं
धुनदलका घटेगा
तस्वीर साफ़ होगी
मानवता मुस्कायेगी
वीवेक को जब साथी
के रूप मैं
अपने पायेगी
_____________राज गुप्ता
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