परिवर्तन, परिवर्तन,परिवर्तन
सब चाहते हैं परिवर्तन
आख़िर कैसे आए ये परिवर्तन
चलो चले बाजार से ले आए ये परिवर्तन
या क्यों न ख़ुद के अन्दर ही इसको ढूंड पाये
परिवर्तन अपने अन्दर से ही आएगा
विचार आशाओ में नवसंचार जगायेगा
आत्मा की सीलन भरी कोठरी के द्वार को खोलकर
उसमे नव निर्माण कर पायेगा
परिवर्तन के लिए आओ एकजुट हो जाएँ
एक साथ मिलके सब कदम बद्गना सिख ले
एकता के स्वर में गीत गुनगुनाना सिख ले
छोरे झिझक अब तो कुछ नया करके दिखाएँ
सिर्फ़ अपने संभाग में ही नही पुरे भारत में अपनी पहचान बनाए
आओ प्रतिज्ञा करे
हमें यूँ ही संघर्ष करते जाना है
लक्ष्य लिया है तो उनसे बढ़कर कर दिखलाना है
अस्तित्व है हमारा अपने आपसे, इसको न कभी भुलाना है
परिवर्तन लाना है हमें परिवर्तन लाना है
आशा ही नही पूर्ण विस्वास है की परिवर्तन का आगाज होगा
अब नही तो कब जब आपका साथ हमारे साथ हो
शायद हम कामयाब हो रहे हो दोस्तों
दुश्मन भी हो रहे हैं अब तो मेहरबान से
_______________राज गुप्ता
Hello Sir,
ReplyDeleteVery well written poem with lot of depth
Regards,
Lucky