नही चाहता था शुन्य में टकराए मेरा उच्छावास झट
कयूँ न उसके पास हो आए एक बार
कयूँ न उसके पास हो आए एक बार
लेकिन फिर अचानक , हृदय से झट उमर वेदना आई
मंद मंद था ऊलास, चाहता था उसका साथ
मंद मंद था ऊलास, चाहता था उसका साथ
उसको भी था सहर्ष स्वीकार, उसका भी था यही विचार
लेकिन समक्ष थी सामजिक मजबूरियां
सोचकर जिनके विषय में मैं हो गया उदास
उदास स्थिति में मन में आया विद्रोही भावः
लेकिन समक्ष थी सामजिक मजबूरियां
सोचकर जिनके विषय में मैं हो गया उदास
उदास स्थिति में मन में आया विद्रोही भावः
सोचा क्यों ये समाज, क्यूं ये सामाजिक रीतिया
जिनका मानवता से है विरोधाभास
रोकती क्यों है मानव को ये सामाजिक कुरीतिया
क्यों नही समझती ये मित्रो की मजबूरिया
जिनका मानवता से है विरोधाभास
रोकती क्यों है मानव को ये सामाजिक कुरीतिया
क्यों नही समझती ये मित्रो की मजबूरिया
Raj Gupta
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