अन्जान सफर

यह ज़िन्दगी है  एक अनजान डगर
कोई नहीं जानता किस मोड़ पर क्या हो जाए
बस इस अनजानी डगर पर चलते जाना है

यह ज़िन्दगी है  एक अनजान सफ़र
कोई नही  जानता
किस मोड़ पर किस मोड़ पर मिल जाए कोई अनजाना
और बन जाए हमसफ़र

बस इस सफ़र पर युही चलते जाना है
यह ज़िन्दगी है जैसे एक अनदेखी नज़र
कब कहाँ चली जाए ये नज़र
बस इन नजरो को नजरो से मिलाना है

ये तो खुदा ही जानता है
किस्मत का क्या अफसाना है
हमें तो इसे हर हाल में स्वीकार करते जाना है
अपने से ही जंग अपने से ही द्वंध
अपने से ही यह युद्ध करते जाना है

यह ज़िन्दगी है क्या इसे समझना, जानना और समझाना है
अभी तो इसे बहुत कम जाना है
अपने ही बन जाए कब बेगाने
और कब बेगानों में से ही अपनों को खोजना और अपना बनाना
यह ज़िन्दगी है अनजान डगर....      

शालिनी गुप्ता


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