ईमानदारी
एक दिन राह चलते चलते मिली मुझे ईमानदारी
मैंने पुछा, कहिये क्या करे आपकी खातिरदारी
वो रुआंसी होकर बोली, चलिए आपने पहचान तो लिया,
मेरा तो अस्तित्व ही मिट गया, आपने जान तो लिया
भारत मैं तो पैदा हुई
इसे कैसे भूल सकती हूँ
जब लोग मुझे नही चाहते
तो मैं कैसे रह सकती हूँ
मेरी दूसरी बहन (अर्थात बेईमानी)
जिसने मुझे धोखा दिया
मेरा घर उजार कर
अपना घर बसा लिया
अब तो लोग यहाँ तक
उसे प्यार करने लगे हैं
की मेरे चाहने वाले को
मुह पर ही गाली देने लगे हैं
इक्का दुक्का कहीं मेरी प्रेमी को देख लेते हैं
तो बहन के प्रेमी मिलकर उसका गला घोट देते हैं
-----राज गुप्ता
सार्थक रचना...बहुत खूब...
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