रोशनी की किरण को बाहर आना होगा
युद्ध बाहर भी है, अंदर भी है
मन के इस युद्ध को हार कर भी जीत जाना होगा
इस युद्ध को, इस द्वंद को अपने से भी जीत जाना होगा
निराशा को हराकर, आशा को जीताकर
खुद से ही खुद को जीताना होगा
मोत के सत्य को देखकर भी
ऐ ज़िंदगी तुझे तो जी जाना ही होगा
पक्षियों से कला जीने की सीखो
घरौंदा बार बार टूटता है उनका
पर होंसला नहीं छूटता उनका
हर बार टूट टूट कर भी घरौंदो को बना लेते है
ये इंसां है जो हौसलों को हरा लेते है
उनसे सीखकर ही अपने घरौंदो को
टूटकर भी बनाना सीखना ही होगा
ऐ ज़िंदगी तुझे तो जी जाना ही होगा
उम्मीद के दिये को अभी बुझने नहीं देना होगा
सैनिक जो खड़े है सरहदों पर मौत की
उनके होंसले को देखकर
मौत को जीतकर उनकी तरह ही जीना होगा
सरहदों को अपनी बचाना होगा
घरौंदो को अपने बनाना होगा
कब तक यूं मर-मर के जीये
उम्मीद के, आशा के दिये को जलाना होगा
ज़िंदगी तुझे घुट घुट कर नहीं
खुल कर अब तो जी जाना होगा
उम्मीद के दियों को जलाना होगा
ज़िंदगी तुझे ज़िंदादिली से
अब जी जाना होगा
शालिनी गुप्ता
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