कभी कभी मायूसी छा जाती है
कभी कभी उदासी भी आ जाती है
ज़िंदगी कहाँ तू एक सी रह पाती है
कभी धुप कभी छाँव की तरह आ जाती है
मौसम की तरह रंग बदलते है तेरे भी
तू भी कहाँ एक रंग ला पाती है
कभी सुख कभी दुःख कितने पहलु है तेरे
तू भी कहाँ एक रुख रख पाती है
ये इंसा ही तो है
जो तेरे हर रूख का सामना करता है
कभी गिरता है, कभी बिखरता है
फिर उठकर अपने होंसले से
तुझे जीता है
तुझे जीने की ख्वाहिश को नहीं कभी तोड़ता है
तेरे हर पहलु, तेरे हर रुख का सामना भी करता है
तेरे दामन में ही अपना सर रखकर रोता है
जीता है तुझे खुद में
और जीने का अंदाज़ औरो को देता है
उदास होकर भी मायूस होकर भी
किसी भी रूप में
तेरे हर रूप को जीता है
शालिनी गुप्ता
कभी कभी उदासी भी आ जाती है
ज़िंदगी कहाँ तू एक सी रह पाती है
कभी धुप कभी छाँव की तरह आ जाती है
मौसम की तरह रंग बदलते है तेरे भी
तू भी कहाँ एक रंग ला पाती है
कभी सुख कभी दुःख कितने पहलु है तेरे
तू भी कहाँ एक रुख रख पाती है
ये इंसा ही तो है
जो तेरे हर रूख का सामना करता है
कभी गिरता है, कभी बिखरता है
फिर उठकर अपने होंसले से
तुझे जीता है
तुझे जीने की ख्वाहिश को नहीं कभी तोड़ता है
तेरे हर पहलु, तेरे हर रुख का सामना भी करता है
तेरे दामन में ही अपना सर रखकर रोता है
जीता है तुझे खुद में
और जीने का अंदाज़ औरो को देता है
उदास होकर भी मायूस होकर भी
किसी भी रूप में
तेरे हर रूप को जीता है
शालिनी गुप्ता
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