जीत विश्वास की

वक्त के आगे सब हार गये है
वक्त के सामने इंसां बेचारा हो गया है 
बेबस लाचार और बेसहारा हो गया है 

कब ये वक्त बीतेगा 
कब ये तूफां खत्म होगा 
कब तक आखिर खुदा
इंसां का यूं ही इम्तिहां लेगा 

कब तक यूं ही इंसां  
इन हालातो का सामना करेगा 
इंसां ही तो है, बेचारा 
कब तक यूं  ही इस वक्त के बीत जाने का इंतजार करेगा 

पर वक्त कभी एक सा नहीं रहता 
बहती नदिया की तरह ये भी थमा नहीं रहता 
इंसां  को तो चलते रहना होगा 
जीवन कभी ठहरता नहीं है 
इसी तरह इंसां  भी कभी हारता नहीं है 

गिरता है, उठता है फिर हालातों का सामना भी करता है 
तूफां के चले जाने और वक्त के बीत जाने का इंतजार करता है 
हालात जो आज है, वो न कल रहेंगे 
हर अँधेरे के बाद सहर है 
ये इंसां  दोहराते रहेंगे 

फिर बनेगा आशियां 
फिर उजाला होगा 
इन नाकाम कोशिशों को तो 
कामयाब होना ही होगा 

शालिनी गुप्ता 

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