अंदाज़े ज़िंदगी

ज़िंदगी तुझे बस अब जीना चाहती हूँ
बादल है भी तो गम के बादलों को हटाकर
उन्हें बारिश की बूंदों  से भिगोना चाहती हूँ
हर छोटी छोटी खुशियों को संजोना चाहती हूँ
सब कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ना चाहती हूँ
ज़िंदगी तुझे बस अब जीना और जीना चाहती हूँ

ज़मीं पर पैर रखकर आसमां की ऊँचाइयों को छूना चाहती हूँ
ज़िंदगी तुझे बस अब जीना चाहती हूँ
ख्वाब कुछ ऐसे देखें भी नहीं पर जो भी है
उन  ख़्वाबों को सच होते देखना चाहती हूँ
प्यार से बढ़कर तो कुछ भी नहीं
बस उसी प्यार को थामकर चलना चाहती हूँ
ज़िंदगी तुझे बस अब जीना चाहती हूँ

मुश्किल तो है पर नामुमकिन नहीं
रास्ता तो है गर मंजिल भी नहीं
इसलिए राह पर चलना चाहती हूँ
ज़िंदगी तुझे बस अब जीना चाहती हूँ

शालिनी गुप्ता 





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